Ranked #1
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.5
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.5
यत्सांख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते |एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति || ५ ||यत्– जो; सांख्यैः - सांख्... Read more
7 Oct 2021
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5mins
Ranked #2
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.4
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.4
सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः |एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् || ४ ||सांख्य– भौतिक जगत् का विश्लेषात... Read more
6 Oct 2021
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5mins
Ranked #3
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.3
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.3
ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति |निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते || ३ ||ज्ञेयः– जानना च... Read more
4 Oct 2021
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5mins
Ranked #4
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.2
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.2
श्रीभगवानुवाचसंन्यासः कर्मयोगश्र्च निःश्रेयसकरावुभौ |तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते || २ ||श्री-भगवान् उवाच– ... Read more
3 Oct 2021
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5mins
Ranked #5
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.1
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 5.1
अर्जुन उवाचसन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि |यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्र्चितम् || १ ||अर्जुनः उवाच– ... Read more
2 Oct 2021
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5mins
Ranked #6
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.42
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.42
तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः |छित्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत || ४२ ||तस्मात्– अतः; अज्ञान-सम्भूतम... Read more
30 Sep 2021
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6mins
Ranked #7
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.41
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.41
योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् |आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय || ४१ ||योग– कर्मयोग में भक्ति से; संन्यस्... Read more
29 Sep 2021
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5mins
Ranked #8
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.40
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.40
अज्ञश्र्चाश्रद्दधानश्र्च संशयात्मा विनश्यति |नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः || ४० ||अज्ञः– मूर्ख, जिसे शास्त्रों... Read more
28 Sep 2021
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5mins
Ranked #9
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.37
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.37
यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन |ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा || ३७ ||यथा - जिस प्रकार से; एधा... Read more
23 Sep 2021
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5mins
Ranked #10
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.36
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.36
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः |सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि || ३६ ||अपि - भी; चेत् - यदि; असि - तुम ... Read more
22 Sep 2021
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7mins